लखनऊ : बहुत कम लोग दूसरों के गम में शामिल होते हैं। ऐसी ही शख्सियत थें बेगम नसीमा रज़ा के वालिद नवाब सैय्यद रज़ा हसन खां जो न सिर्फ अपने पूर्वजों की कब्र पर फातेहा पढ़ते, बल्कि अंधेरी पड़ी कब्रों पर भी मोमबत्तियां जला कर रोशनी करते थें। सल्तनत मंजिल, हामिद रोड, निकट सिटी स्टेशन, लखनऊ की बेगम नसीमा रज़ा आगे कहती हैं की शबे बरात के दिन परिवार के सभी लोग नमाज़ पढ़ते हैं और कब्रों पर फातिहा पढ़ कर वहां अगरबत्ती, मोमबत्ती जलाकर रोशनी करते हैं। वो आगे कहती हैं की शबे बरात के दिन उनके वालिद खास तौर पर याद आते हैं। जब वो हयात थें तब वो हम सभी को साथ लेकर कब्रिस्तान जाया करते थें। शाम के वक्त हमलोग मरहूम लोगों की कब्र पर मोमबत्तियां जला कर रोशनी करते, फूल चढ़ाते। अगर कोई कब्र अंधेरे में रहती तो मेरे पापा उस कब्र पर भी रोशनी कर फातिहा पढ़ते थें। मेरे शौहर नवाजादा सैय्यद मासूम रज़ा, एडवोकेट भी इस बात को बहुत याद करते हैं और वे भी इसी तरह उनकी पुरानी परंपरा निभाते हुए हर वीरान पड़ी कब्र पर रोशनी करते हैं। हमलोग पूरे परिवार के साथ जहां कहीं भी पूर्वजों की कब्रें हैं वहां जाकर दुआ पढ़ते हैं। अंधेरी कब्रों पर रोशनी करते और उन्ही की तरह फातेहा पढ़ कर उनकी रूहों को भी जन्नत अता करने की दुआ करते हैं।