आलू की फसल में पिछेता-झुलसा बिमारी के रोकथाम के सम्बन्ध में
जिन किसान भाइयों ने आलू की फसल में अभी तक फंफूदनाशक दवा का पर्णीय छिड़काव नही किया गया है या जिनकी आलू की फसल में अभी पिछेता-झुलसा बिमारी प्रकट नही हुुई है उन सभी किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि वे मैन्कोजेब/प्रोपीनेट/क्लोरोथेलोनील युक्त फूफदनाशक दवा का रोग सुग्राही किस्मों पर 0.2-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात 2.0-2.5 किलोग्राम दवा 1000 ली0 पानी में घोलकर प्रतिहेक्टेयर छिड़काव तुरन्त करंे साथ ही साथ यह भी सलाह दी जाती है कि जिन खेतो में बिमारी प्रकट हो चुकी हो उनमें किसी भी फंफूदनाशक-साईमोक्सेनिल+मैन्कोजेब का 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 ली0 पानी) की दर से अथवा फेनोमिडोन+मैन्कोजेब का 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 ली0 पानी) की दर से अथवा डाईमेथोमार्फ 1.0 किलोग्राम+मैन्कोजेब का 2.0 किलोग्राम (कुल मिश्रण 3.0 किलोग्राम) प्रति हेक्टेयर (1000 ली0 पानी) की दर से छिड़काव करें। फंफूदनाशक को 10 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है, लेकिन बिमारी की तीव्रता के आधार पर इस अन्तराल को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। किसान भाइयों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि एक ही फंफूदनाशक को बार-बार छिड़काव न करें एवं बारिश के दौरान फंफूदनाशक के साथ स्टिीकर को 0.1 प्रतिशत की दर (1.0 मिली0 प्रति ली0 पानी) के साथ मिलाकर प्रयोग करें। यह जानकारी उप निदेशक उद्यान ने दी है।