हटा दमोह संवाददाता पुष्पेन्द्र रैकवार
प्रभु की सेवा गुरु की सेवा व्यर्थ नहीं जाती
गुरु की कृपा वरदान हुआ करती है मुनि श्री आगमसागर जी महाराज कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के आशीर्वाद से मुनिश्री आगम सागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा गुरुवर का आदेश हुआ उद्बोधन के लिए गुरु की कृपा वरदान हुआ करती है ।उनकी कृपा से सांसारिक सुख के साथ-साथ आत्मिक सुख की प्राप्ति होते हुए भव्य जीव के लिए निर्वाण की अवस्था उपलब्ध होती है ।यह सब गुरु की कृपा से ही संभव होता है। जिनके हृदय में गुरु बसे होते हैं उन्हें संसार में कोई चीज दुर्लभ नहीं होती सब चीज सुलभ होती चली जाती है गुरु की भक्ति हमने आगम ग्रंथो से जाना है ।गुरु की भक्ति अच्छी तो तीर्थंकर प्रकृति का बंध करती है। वह तीर्थंकर प्रकृति जो तीनों लोकों में डंका बजाती है संसार में परोपकार का कार्य करते वह तीर्थंकर प्रकृति वाले महापुरुष होते हैं ।देश पृथ्वी पर अपनी आत्मा की उन्नति के साथ-साथ असंख्यात जीवन को मोक्ष मार्ग पर लगा देते हैं ।ऐसी तीर्थंकर प्रकृति का बंध गुरु भक्ति से हुआ करता है ।जिन्होंने गुरु भक्ति से प्रेरित होकर गुरुओं की पूजन भक्ति की है बे महान पुण्य कमाते हुए अपने जीवन को सफल करते हुए अपनी आत्मा की उन्नति की ओर जाते हैं ।हमारे गुरुवर विद्यासागर जी महाराज अपने गुरु के अनन्य भक्त थे जीवन के अंतिम समय तक उन्होंने उनकी चर्या को निभाया और अपनी वाणी को संयमित करके रखा इस प्रकार से अपने जीवन में जितनी भी ऊंचाइयों को पाया सबका श्रेय स्वयं करते हुए भी सदा यही वार्तालाप करते रहे गुरु की कृपा से सब हो रहा है ।उनकी उन वार्तालाप को सुनकर वार्ता को सुनकर मन करता है कि गुरुवर विद्यासागर जी महाराज कृतित्व व्यक्तित्व से ऊपर उठकर अपनी आत्मा की उन्नति करते हुए सिद्धालय को प्राप्त करने के लिए इस काली काल में भी महान कठिन चर्या को संपन्न करके गए हैं ।उनके स्थान पर वर्तमान आचार्य समय सागर महाराज ज्ञान ,ध्यान, तप में रहने वाले धैर्य की मूरत है ।अभी तक हमने धैर्य को पुस्तक में पढ़ा था ।लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में जब से आचार्य समय सागर महाराज आचार्य पद पर बैठे हैं।कैसा उनका धैर्य है यह उनके चरण सानिध्य में रहकर पढ़ रहा हूं अभी तक पुस्तक का लिखा लिखा साक्षात महसूस कर रहा हूं। जीवन में गजब का धैर्य है। प्रभु से प्रार्थना कर रहा हूं यदि उनके जीवन का शतांश भी धैर्य जीवन में आ जाए तो मेरा उद्धार हो जाए इस कली काल में भी। एक छोटा सा प्रसंग गुरु मुख से सुनने मिला था आपके सामने रख रहा हूं। सागर के पंचकल्याणक के समय गुरुवर का बहुत योगदान रहा था सागर के अमरनाथ जी का बहुत सहयोग रहा एक बार अमरनाथ जी ने आचार्य महाराज के प्रवचन के पूर्व एक दृष्टांत के माध्यम से रखा था उस दृष्टांत को सुनकर आचार्य महाराज की अच्छी मुस्कान आई थी। मैं उस दृष्टांत को सुन रहा था और आचार्य महाराज की भाव-भंगिमा को पढ़ रहा था लगा गुरु जी को यह दृष्टांत अच्छा लगा है मुझे भी बहुत अच्छा लगा । यह दृष्टांत सुनकर मुझे लगा मुझे भी ऐसा ही बनना है गुरु के चरणों में। वह बात क्या थी आपके सामने रखता हूं एक भटकता हुआ नौजवान एक गुरु जी के पास में पहुंचा बोला अपनी शरण में रख लो। गुरुदेव वृद्ध थे उन्हें भी लग रहा था जो हमारे पास है वह किसी को दे जाऊं प्राय करके गृहस्थ जीवन में ऐसा होता है जब गृहस्थ वृद्ध हो जाता है घर गृहस्थी को छोड़ने का मन बनाता है। तो वहअपनी संपत्ति पुत्र पुत्री में वांट देता है जो कुछ देना होता है देकर सोचता है मैं निर्विकल्प हो गया आप चैन से मर सकूंगा। वे ज्ञानी थे कोई योग्य शिष्य मिला नहीं जिसको सौंप देते ।वह तरुण आया उसमें क्षमता थी योग्यता थी उसे ही सौंप दिया । वह शिष्य गुरु के चरणों में रहता ।सुबह शाम सेवा भक्ति करता है उन्होंने सोचा जिसको मैंने सब कुछ सोंपा वह कुछ दिन में मरने वाला है गुरु को चिंता हो गई अब मैं भी जाने वाला हूं शिष्य भी जाने वाला है अब मेरे पास इतना समय नहीं दूसरे को शिष्य तैयार कर सकूं। मेरे द्वारा दिया गया ज्ञान व्यर्थ चला जाएगा ।गुरु कितने उदार होते हैं इसको जो ज्ञान बांटा है इसकी जिंदगी कम नहीं होनी चाहिए। यह परोपकार में लगा है। गुरु ने निश्चय किया मैंने जान तो लिया है यह अमावस की रात को मरेगा लेकिन मैं भरसक प्रयत्न करूंगा यह मरने ना पाए। गुरु शिष्य आजू-बाजू में सोते रहते हैं दैनिक कार्यक्रम चलते रहते है ।गुरु ने अवगत नहीं कराया बेटा तेरी उम्र कम है धीरे-धीरे वह अमावस की काली रात आ गई गुरु शिष्य दोनों आजू-बाजू में सो गए ।वह शिष्य को मारने वाला आता है गुरु कहते हैं ठहर जा ठहर जा मुझे मालूम है तुम क्यों आए सामने वाला कहता है मुझे मेरा काम करने दो ।गुरु कहते हैं नहीं तुम जिसे मारने आए हो वह मेरा शिष्य है मैं अपने सामने शिष्य को मरता हुआ नहीं देख सकता। देखो यह हमारा दुश्मन है इसने ऐसा ऐसा किया था मैं इसे मार कर जाऊंगा ।गुरु ने कहा हम मानते हैं शिष्य ने तुम्हारा कुछ बिगाड़ किया होगा ।लेकिन मैंने इस ज्ञान देकर सजाया संवारा है यह दुनिया में आगे जाकर बहुत परोपकार करेगा इसकी जान मत लो इसके बदले में मेरी जान ले लो। मैं कितने दिन का मेहमान हूं गुरु कहता है सामने वाला जो मारने वाला था वह काला नाग था वह कहता है मैं तो इसे डस करके ही जाऊंगा। आज मैं बलवान हूं इसे दबाकर ही जाऊंगा। गुरु ने बहुत समझाया ।इस बदले के रास्ते से शांति नहीं होगी तुम शांति का रास्ता अख्तियार करो। जिसके मन में बदले की भावना होती वह शांति का रास्ता नहीं अख्तियार कर सकता। वह तो सोचता बदला लेकर ही शांति मिलेगी ।दोनों के बीच बहुत देर तक चर्चा चलती रही। गुरु कहता प्राण दान दे दो वह कहता प्राण लेकर ही जाऊंगा। कहां मिलेंगे ऐसे गुरु जो अपना जीवन देकर शिष्यों को सजाया संवारना चाहते हैं इस काली काल में तो ऐसे शिष्य मिल जाएंगे जो गुरु पर प्रहार कर बैठते जीवन लीला समाप्त कर बैठते ।लाखों में एक आध होता जो गुरु के प्रति करुणा वान होता ।गुरु मात्र कर्तव्य करते बदले में कोई चाह नहीं कि शिष्य हमारी जय जयकार करेगा ।किए जा जग में भलाई के काम तेरे दुख दूर करेंगे राम ।वफादार ईमानदार अपना कर्तव्य करके आगे चले जाते हैं प्रभु की सेवा गुरु की सेवा व्यर्थ नहीं जाती।