जो गंगा जमुनी तहजीब के बारे में बात करते हैं वे लोग काशी मथुरा छोड़ दे (आचार्य सदानंद जी महाराज)
13 अगस्त प्रयागराज, समस्त कर्तव्य पथ भक्त परिवार प्रयागराज के द्वारा आयोजित मुंशी राम प्रसाद की बगिया नारायण वाटिका मुट्ठीगंज में चल रही श्री शिवमहापुराण कथा के द्वितीय दिवस वृंदावन से पधारे कथा वक्ता आचार्य सतानन्द जी महाराज ने कहा वो लोग जो गंगाजमुना तैहज़िब की बात करते हैं वो हमारी काशी मथुरा छोड़ दें तो भाईचारा माना जाएगा नहीं हमने जैसे अयोध्या लिए हैं वैसे ही काशी मथुरा भी लेंगे और बाक़ी 30 हजार से ज्यादा मंदिरों को जिन मुग़लो ने बर्बाद किया उसके बारे में भी सोचेंगे ,कथा के मध्य महाराज जी ने बताया भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
कथा के द्वितीय दिवस पर महा आरती करने वालों में प्रमुख रूप से
राजेश केसरवानी, कुमार नारायण,सतीशचन्द्र केशरवानी ,लल्लू मित्तल , शैलेंद्र गुप्ता मोहित केसरवानी रामबाबू केसरवानी राजेंद्र केशरवानी , ओमप्रकाश केशरवानी , संदीप केशरवानी , अशोक केशरवानी , कैलाश चन्द्र केशरवानी , सुधीर केशरवानी , अवधेश कुमार गुप्ता सुनील केशरवानी (पप्पू कटरा) उषा केसरवानी विमला जायसवाल उर्मिला केसरवानी रीता जायसवाल ने महाराज जी का स्वागत किया !!