ईदगाह में सुबह 7:30 बजे अदा की गई बकरीद की नमाज, एक दूसरे को गले लग कर दी मुबारकबाद
ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार 17 जून को मनाया गया। सभी ने एक दूसरे को गले लग कर मुबारकबाद दी बाद नमाज सभी ने मुल्क में तरक्की, अमन-चैन और आपसी भाईचारे की दुआ की।वही बीमारी में मुब्तिला लोगों को जल्दी सिफा मिलने की दुआ की गई। ईद के मौके पर ईदगाह और मस्जिदों के पास पुलिस की चाक चौबंध व्यवस्था देखने को मिली , और सुबह ,
इस्लामिक मान्यता के अनुसार, बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. बकरीद को ईद उल अजहा, ईद उल जुहा, बकरा ईद अथवा ईद उल बकरा के नाम से भी जाना जाता है. बकरीद के मौके पर मुस्लिम धर्म में नमाज पढ़ने के साथ साथ जानवरों की कुर्बानी भी दी जाती है.
बकरीद में क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी?
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने आप को खुदा की इबादत में समर्पित कर दिया था। उनकी इबादत से अल्लाह इतने खुश हुए कि उन्होंने एक दिन पैगंबर हजरत इब्राहिम की परीक्षा ली। अल्लाह ने इब्राहिम से उनकी सबसे कीमती चीज की कुर्बानी मांगी, तब उन्होंने अपने बेटे को ही कुर्बान करना चाहा। पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के लिए उनके बेटे से ज्यादा कोई भी चीज अजीज और कीमती नहीं थी। कहा जाता है कि जैसे ही उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह वहां पर एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। अल्लाह पैगंबर हजरत इब्राहिम अलेहिस्लाम की इबादत से बहुत ही खुश हुए। मान्यताओं के अनुसार, उसी दिन से ईद-उल-अजहा (बकरीद) पर कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।
» ईद-उल-अजहा के दिन बकरे की कुर्बानी ईद की नमाज के बाद और सूर्यास्त से पहले दी जाती है।इस्लामिक मान्यता के अनुसार, बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. बकरीद को ईद उल अजहा, ईद उल जुहा, बकरा ईद अथवा ईद उल बकरा के नाम से भी जाना जाता है. बकरीद के मौके पर मुस्लिम धर्म में नमाज पढ़ने के साथ साथ जानवरों की कुर्बानी भी दी जाती है.
बकरीद पर कुर्बानी देने के क्या नियम होते हैं?
» बकरीद के दिन किसी हलाल जानवर की कुर्बानी महत्वपूर्ण मानी तो बकरे की जगह भैंस, भेड़ और ऊंट की कुर्बानी भी दे सकते हैं।
» ऊंट की कुर्बानी सात लोग मिलकर दे सकते हैं। वहीं भेड़ और बकरी को एक ही कुर्बानी के तौर इस्तेमाल कर सकते हैं।
» बकरीद में जानवरों के बच्चे की कुर्बानी नहीं दी जाती है। कुर्बानी अल्लाह के नाम पर ही दिया जाता है।
» कुर्बानी के बकरे को तीन अलग- अलग हिस्सों में बांटा जाता है।
» पहले भाग रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए होता है, वहीं दूस