बलिदान दिवस 1दिसम्बर अमर शहीद नारायण दास खरे जी को श्रद्धांजलि अर्पित
टीकमगढ़ /1 दिसंबर बलिदान दिवस अमर शहीद नारायण दास खरे जी कि मूर्ति स्थल टीकमगढ़ के अस्पताल चौराहे पर पूर्व मंत्री श्री यादवेंद्र सिंह जी, ,नगरपालिका अध्यक्ष अब्दुल गफ्फार मलिक ,पवनघुवारा प्रदेश महामंत्री म.प्र.काग्रेंस कमेटी, सूर्य प्रकाश मिश्रा , दुष्यंत लोधी ,राजेन्द्र राजू खरे, देवेंद्र नापित,अरविंद खटीक रमाशंकर नायक, बीज्जू जैन, सुभाष ,मोनिस मालिक ने मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये विज्ञप्ति मे पवनघुवारा ने बताया कि आजादी की अलख जगाने वाले अमर शहीद शेरे बुंदेलखंड श्री नारायण दास खरे का जन्म ललितपुर जिले के ग्राम दैलवारा में 14 फरवरी 1918 को हुआ था बचपन में ही उनके पिता श्री गनपत सिंह जी स्वर्ग सिधार गए थे ।13-14 वर्ष की आयु में अपने चाचा श्री पारीछत जी के पास टीकमगढ़ में रहने लगे।उनके चाचा जी ओरछा राज्य में कानूनगो थे। श्री नारायण दास खरे अपने छात्र जीवन से ही अपने आस-पास के गांव में राष्ट्रीयता की अलख जगाने वाले पर्चे बांटने का काम करने लगे थे।
उन्होंने सन 1938_39 में बुंदेलखंड के अष्ट गढ़ी राज्य दुरबई,बिजना,बंका पहाड़ी, टोडी फतेहपुर आदि में राष्ट्रीयता का प्रचार प्रसार किया। यहां के जागीरदारों ने उन्हें अनेक कष्ट पहुंचाए ।ओरछा राज दरबार में उन्हें महेंद्रबाग में ओवर्शेअर बना दिया था पर खरे जी नौकरी छोड़ कर हैदराबाद आंदोलन में कूद पड़े जहां उन्हें छह माह की कैद में रहना पड़ा। जेल से छूटने के बाद भी झांसी के कार्यकर्ताओं के साथ राजनीतिक प्रचार में जुट गए। वे ठेठ बुंदेलखंडी भाषा में अपने भाषण दिया करते थे। सन 1942 में गठित ओरछा सेवा संघ के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने ओरछा हरिजन सेवक संघ के मंत्री के रूप में भी कार्य किया था। सन 1945 में राज्य की धारा सभा के पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए थे। उनके निर्देशन में ही ओरछा विद्यार्थी संघ का गठन हुआ था जो बाद में ओरछा विद्यार्थी कांग्रेस के नाम से संचालित हुई। 15 अगस्त 1947 को जब देश स्वतंत्र हुआ तब देसी राज्यों ने अपने आप को स्वतंत्र मानकर प्रजातंत्र की स्थापना की माँग करने वाले कार्यकर्ताओं के प्रति अपना दमन चक्र आरंभ कर दिया। उन्होंने उत्तरदायी शासन के लिए आंदोलन आरंभ करने की घोषणा के साथ ही, श्री खरे जी 16 नवंबर से 30 नवंबर तक बड़ागांव क्षेत्र के विभिन्न ग्रामों में सभाएं कर आंदोलन की तैयारियां कर रहे थे ,1 दिसंबर 1947 को जब नारायणदास खरे जी अपनी साइकिल द्वारा बड़ागांव से टीकमगढ़ आ रहे थे तब नरौसा नाले पर उनकी पीठ पर गोली दाग दी गई। उनकी साइकिल व कपड़ों को भी पानी में डुबो दिया गया। उसके उन पर कुल्हाड़ी से वार कर उन्हें शहीद कर दिया था। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही नामो निशां होगा!!
पवनघुवारा