बिना कोर्ट जाए जनता को अधिकार मिल जाना सुशासन है: अविरल अमिताभ जैन
एक कार्यवाही द्विज प्रभाव
निश्चित ही भारतीय राज्य व्यवस्था के लिए कलेक्टर जैसी पोस्ट बहुत आवश्यक है लेकिन ये भी उतना ही आवश्यक है की इतनी बड़ी पोस्ट पर बैठा व्यक्ति अपने आचरण से किसी भी प्रकार का अहित न करदे।
शाजापुर जिले में हुई घटना अब इस विषय पर सोचने के लिए मजबूर करती है। ट्रक और बस ड्राइवर हड़ताल के दौरान शाजापुर कलेक्टर द्वारा ओकात में रहने बाली बात कहा जाना लोक तंत्र के लिए सही नही है। जब भी दो पक्षों के बीच गहमा गहमी होती है तो अक्सर उत्तेजना में व्यक्ति बो सब बाते बोल देता है जो उसके मस्तिष्क में चल रही होती है और इसी का उदाहरण शाजापुर की घटना है।
दरअसल कलेक्टर की जो पोस्ट है ये मुगल साम्राज्य के खत्म होने के बाद जब अंग्रेजों द्वारा राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था अपने हाथ में ली गई तभी गवर्नर जनरल कॉर्नोवालिस द्वारा कलेक्टर का पद सृजित किया गया। कलेक्टर एक जिला का अधिकारी होता है जिसके पास लगभग जिले की हर महत्वपूर्ण शक्ति निहित होती है इसीलिए ये पोस्ट कई बार राजतंत्रात्मक शक्ति की तरह प्रतीत होती है क्यों की अंग्रेजी कंपनी के शासन में राजाओं की जगह इन्ही कलेक्टरों के पास राजा जैसी शक्तियां थी। इसीलिए अगर जन मानस को कोई भी कार्य करवाना हो तो कलेक्टर साहब के पास अर्जी करनी पड़ती थी जिसकी वजह से एक राजतंत्रात्मक शक्ति का केंद्र कलेक्टर बन गए और जाहिर सी बात है की शक्ति का नशा इस पोस्ट पर चढ़ गया। १९४७ में आजादी मिलने के बाद भी हमारी सरकारों में तात्कालिक कार्य को देखते हुए इसी व्यवस्था को जारी रखा लेकिन इसमें लोक तंत्र के अनुकूल परिवर्तन भी किए। सरकार ने अपने स्तर से तो परिवर्तन किए लेकिन जो परिवर्तन इस सब में नही हो पाया बो रहा एटिट्यूड का। लोकतंत्र आने के बाद कलेक्टर को सिविल सर्वेंट अर्थात जन सेवक तो बोलने लगे लेकिन हर सिविल सर्वेंट में बो भावना, जनता के लिए और जनता के हित में कार्य करने के लिए समर्पण सायद पूर्ण रूप से नही आ पाया और इसी बात का उदाहरण है शाजापुर की घटना।
हमारे भारतीय ग्रंथों और महान विचारकों ने कई बार ये बताया है की आदर्श शासक के क्या गुण होते है और हर बार एक बात सामने आती है की आदर्श शासक को विनम्र और अति सहनशील होना चाहिए। अंग्रेजो द्वारा बनाई व्यवस्था में इन्ही बातो की कमी थी जो आज भी दिखती है।
इस सब के बीच लोकतंत्र आने के बाद से जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों और उनके द्वारा चुने गए मंत्रियों पर अधिक जिम्मेदारी आती है की बे इन जन सेवको की शक्तियों पर अंकुश लगा कर रखे ताकि जनता के साथ किसी भी प्रकार की अवमानना न हो। जनता का व्यक्तिगत स्तर पर सम्मान हो और गलत करने वाले पर उचित कार्यवाही हो।
इसी परिपेक्ष में मध्य प्रदेश में नवीन मुख्य मंत्री श्री मोहन यादव द्वार शाजापुर के कलेक्टर द्वारा की गई टिप्पणी के बाद स्थानांतरण करना सबसे उचित कार्यवाही है। इस कार्यवाही ने एक तरफ जनता में लोक तंत्र के प्रति विश्वास बढ़ाया है तो दूसरी तरफ पूरी ब्यूरोक्रेटिक लॉबी को संदेश दिया है की इस प्रकार की गलतियां बर्दास्त नही की जाएगी। लोक तंत्र में जनता का सम्मान सर्वोपरि है क्योंकि तभी जनता को सही मायने में सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित किया जा सकता है।
इस सब के बीच मोहन यादव जी तारीफ के लिए इस लिए भी हक दार है क्योंकि आम तौर पर जनता को अपने अधिकारों को पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है लेकिन इस बार बिना कोर्ट जाए जनता को उनके अधिकार मिला है। यही तो सही मायने में सुशासन है। ये बात बो व्यक्ति बहुत अच्छे से समझ सकता है जिस व्यक्ति के साथ हाल ही में शाजापुर में ये घटना हुई है।