मनुष्य अपनी कीमत नहीं आंक पा रहा मुनिश्री अचलसागर जी महाराज कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से मुनिश्री अचलसागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कोई भी व्यक्ति जब वस्तु खरीदने के लिए बाहर जाता है दुकान पर जाता है तो उस वस्तु पर वह मुख्यतः तीन बातें देखा करता है एक उस वस्तु की मैन्युफैक्चरिंग डेट क्या है ,दूसरा उस वस्तु की कीमत क्या है, तीसरा उसकी एक्सपायरी डेट क्या है ।वस्तु को देख लिया मैन्युफैक्चरिंग एक्सपायरी क्या है और कीमत क्या है। हम सभी ने जन्म लिया हमारी मैन्युफैक्चरिंग डेट क्या है हमारी कीमत क्या है और हमारी एक्सपायरी डेट क्या है यदि इस ओर हम ध्यान दें तो हमारे जीवन जीने की जो कला है वह सामने आ जाएगी। व्यक्ति जन्म ले रहा है मर भी रहा है पर कैसे जीना है इसका कोई भान नहीं है उस व्यक्ति ने अपनी कीमत समझी ही नहीं है ।जब तक हम अपनी कीमत नहीं समझेंगे जन्म लिया मरण किया अनादि काल से अनंत काल तक की यात्रा हो रही है और वह यात्रा होती ही रहेगी ।आखिर क्यों कीमत नहीं समझ पा रहे हैं तो व्यक्ति अपनी ओर दृष्टि न करके व्यक्ति की दृष्टि बाहर की ओर है, और जब तक हम दूसरी वस्तुओं की कीमत समझते रहेंगे तब तक हम अपनी कीमत को आंक ही नहीं पाएंगे कि हमारी कीमत क्या है ।सनत कुमार चक्रवर्ती का उदाहरण आप लोगों के सामने आया है अपने सभी ने पढ़ा होगा जब सनत कुमार चक्रवर्ती उनके रूप लावण्य की इंद्रसभा में चर्चा हो रही थी की मृत्यु लोक में सबसे रूपवान सनत कुमार चक्रवर्ती है। सनत कुमार चक्रवर्ती अपनी व्यायाम शाला में व्यायाम कर रहे थे जब उनके रूप की चर्चा की गई तो उनके मन में भी गुदगुदी हुई देखना है तो राज्यसभा में देख लें जब दोनों देव राज्य सभा में देखते आभूषणों से सनत कुमार चक्रवर्ती सुसज्जित हैं ।कहते हैं महाराज पहले जैसी बात नहीं रही पानी मंगवाया गया इसमें थूक दो सनत कुमार चक्रवर्ती ने थूका कीड़े बिल बिलाने लगे महाराज आपको कुष्ठ रोग हो गया है ।इतनी बात सुनी और उन्हें जीवन की नश्वरता का भान हो गया वन में जाकर दीक्षा ग्रहण कर ली ।पृथ्वी लोक पर सनत कुमार मुनिराज बैठे हुए थे देवलोक से देव आते हैं और कहते हर बीमारी का इलाज करा लो ।सनत कुमार मुनिराज कहते हमारी बीमारी तो जन्म जरा मृत्यु रूपी बीमारी है इसका इलाज हो तो इलाज कर दो ।देव कहते इसका इलाज तो आपके पास है रत्नत्रय जो जन्म जरा मृत्यु रूपी बीमारी को दूर कर सकता है। आज के समय में हर व्यक्ति इस शरीर की नश्वरता को समझ रहा है कब क्या घटना घट जाए कोई व्यक्ति समझ नहीं पा रहा ।हर व्यक्ति जीवन चाह रहा है और अपने जीवन से खिलवाड़ करता चला जा रहा है। खाओ पियो ऐश करो की भावना हो गई है। जब तक खाओ पियो ऐश करो की भावना रहती तब तक संस्कृति विकृत हो गई है। चार बातें दुर्लभ है कौन सी चार बातें दुर्लभ हैं पहले मनुष्य पर्याय बहुत दुर्लभ है दूसरी धर्म श्रवण उससे और भी दुर्लभ है धर्म श्रवण करने वाले यहां कितने व्यक्ति बैठे हैं गिनती के हैं ।जो धर्म श्रवण किया जाए उसे पर श्रद्धा हो जाए वह दुर्लभ है इसके बाद और क्या दुर्लभ है मनुष्य पर्याय मिल जाए धर्म श्रवण हो जाए उस पर श्रद्धा हो जाए वह धर्म मनुष्य जीवन में आचरण में आ जाए वह दुर्लभ है। यह सब प्राप्त होने के बाद भी जीवन में परिवर्तन नहीं आया हम पुराने होते चले जाते जा रहे हैं मृत्यु के मुख की ओर बढ़ते चले जा रहे ।शरीर की कीमत व्यक्ति नहीं आंक रहा है ना आत्मतत्व की कीमत आंक रहा है ऐश करो नीति पर चल रहा ।जब मृत्यु के निकट आ जाता तो थोड़ा बहुत जो धर्म है और वही समय चिंतन करता । मैंने सबके लिए सब कुछ किया पर अपने लिए कुछ नहीं किया ।क्या हम अपने लिए कुछ कर रहे हैं अपने लिए कुछ हो ही नहीं रहा।
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