विकसित भारत और महिला सम्मान
महिला सशक्तिकरण का उत्कृष्ट उद्धरण स्थापित किया है संकल्पित भारत ने : अविरल अमिताभ जैन
महिला सम्मान में मध्य प्रदेश एक कदम और आगे
अब महिला सम्मान और सशक्तिकरण सिर्फ लेखन का विषय नहीं है अपितु ये नए भारत में चरितार्थ दिख रहा है इसी बात का उत्तम उद्धरण है भारत के 75 वे गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम। “यत्र नारी पूज्यंते तत्र रमंते देवता” भारतीय परंपरा के प्राचीनतम वाक्यों में से एक है। जब विश्व ने सभ्यता को समझना सुरु किया था तब से भारत में महिला और उनके सम्मान की बात न केवल भारत में है बल्कि भारत की नीव में है। सम्मान के नाम पर सम्मान की बात तो सभी जगह होती है लेकिन सही रूप में सम्मान देना हर किसी के लिए संभव नहीं है। वेस्टर्न कल्चर ने पुर जोर तरीके से महिला और उनके अधिकारों की बात लंबे समय से की है लेकिन जिस रूप में भारत ने महिला सम्मान, महिला अधिकार और महिला सशक्तिकरण किया है वह अपने आप में अतुलनीय है। भारत ने केबल शब्दो में नही अपितु हर क्षेत्र में महिला को भागीदारी देकर ये सिद्ध किया है। ऐसा कदापि नहीं है की भारत ने महिला सम्मान और सशक्तिकरण की श्रृंखला अभी आधुनिक भारत में सुरु की हो बल्कि महिला सम्मान और सशक्तिकरण तो भारत की मूल में हमेशा से ही रहा है तभी तो इस देश में महिला सम्मान के लिए एक नहीं कई बार पूरे समाज ने मुखरता से महिला सम्मान का मुद्दा पेश किया है। भारत में रावण वध हो या महाभारत युद्ध हो महिला सम्मान दिलाने के लिए दोनोंही उत्कृष्ट उद्धरण प्रस्तुत करते है। हम केबल महाकाव्य का ही उद्धरण क्यो ले। गुप्ता साम्राज्य के समय महान संस्कृत विद्वान कालीदास द्वारा रचित अभिज्ञान शकुंतलम में भी नायिका शकुंतला को रानी के अधिकारों का प्राप्त होना महिला अधिकार का प्रतीक है तो दक्षिण के महान संगम ग्रंथ तोलकापियम में भी हमे नायिका कन्नगी की कहानी महिला सम्मान बताती है। अर्थात केबल उत्तर भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत में महिला सम्मान भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है।
ये बात भी सही है की जो महिला सम्मान प्राचीन भारतीय संस्कृति में दर्शित होता है बो समय के साथ और भारत में विदेशी और अक्रांत आक्रमणों के बाद उस महिला सम्मान और अधिकारों में बहुत हद तक ह्रास हुआ था। मध्यकालीन भारत में जो शासन व्यवस्था थी उसने राज्य का देवी सिद्धांत (देवी सिद्धांत में राजा के धर्म अनुसार राज चलता है अब जो राजा का धर्म बताएगा उसी प्रकार राज व्यवस्था चलेगी) का अनुसरण करते हुए महिला को उसके अधिकार से वंचित किया क्यों की जिन मूल्य पर मध्यकालीन भारतीय राज व्यवस्था स्थापित हुई थी उनमें ऐसा ही होता था यहां ये बताने की आवश्कता नही है की किस परंपरा में महिला का स्थान निम्न है क्यों की ये जग विधित है। विदेशी अक्रमणो ने भारतीय संस्कृति में जिस पर सर्व प्रथम आक्रमण किया तो बो थी महिला और उनकी स्वतंत्रता। इन अक्रमणों के बाद ही महिलाओं के अधिकार निर्धारित कर दिए गए। राज प्रशासन से बाहर कर दिया, सामाजिक प्रतिबंध लगा दिए और इस प्रकार जो महिला शक्ति भारत के विकास में सहभागी थी अब उसका योगदान नाम मात्र का रह गया।
आधुनिक भारत की ये आवश्यकता है की जब तक महिलाओं को विकास के पहिए का आधा अधिकार नही मिलेगा तब तक विकसित भारत के सपने में विलंब होता जाएगा और इसी भावना और विचार को मोदी सरकार ने भली भाती समझा है इसीलिए जो प्रयास पिछले दस वर्षों में महिला सशक्तिकरण के लिए हुए है बो पिछले 65 वर्षो में नही हुए थे। पिछले दस वर्षो में महिला सशक्तिकरण के बीच में आने बाली अधिकतर बाधाओं को दूर किया गया है जैसे तीन तलाक जैसी काली व्यवस्था, धार्मिक स्थानों पर महिलाओं का प्रवेश सुनिश्चित करना, उज्जवला योजना के माध्यम से महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन निर्वाह में सुधार, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी पहल से महिलाओं को शिक्षित करना, महिला स्वसहायता समूह के माध्यम से महिला सशक्तिकरण, भारतीय न्याय सहिया में महिलाओं के अनुकूल प्रावधान करना, सेना में महिलाओं की भागीदारी बड़ाना और इन सब में सबसे अधिक महत्वपूर्ण महिला सम्मान विद्येयक को पारित करके महिलाओं के लिए संसद में एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था करना। इन सभी कृत्यों ने महिलाओं का जो सम्मान बढ़ाया है बह बहुत ही सराहनीय है। लेकिन इन सब से इतर सरकार तारीफ के लिए एक बार और हक दार है क्यों की सरकार ने केबल कागजों पर ये सारे कार्य नही किए है अपितु भारत और विश्व के सामने उदहारण के साथ बताया भी है। 26 जनवरी 2024 की 75 वे गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में ये सब पूर्ण रूप से प्रदर्शित हुआ है। इस कार्यक्रम में महिलाओं की इतनी अधिक भागीदारी ने बिल्कुल साफ संदेश दिया है की भारत में अब महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विकास के महा यज्ञ में सहभागी है अब वह केबल मूक दर्शक न होकर समावेशी विकास का हिस्सा है। इसी बात को अधिकतर राज्य और उनके द्वारा प्रस्तुत झांकियो के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। जैसे मध्य प्रदेश की झांकी ने आत्मनिर्भर महिला – विकास का संकल्प प्रस्तुत किया। मध्य प्रदेश की झांकी महिला सशक्तिकरण के विचार में एक कदम और आगे थी क्योंकि मध्य प्रदेश की झांकी ने न केवल सामान्य वर्ग की महिला अपितु जनजाति महिला मोटे अनाज की रानी के रूप में प्रसिद्ध लहरी बाई की प्रतिमा दरसाई थी अर्थात मध्य प्रदेश ने साफ संदेश दिया है की हमारे यहां महिला सशक्तिकरण सिर्फ शहर तक सीमित नहीं है अपितु ये जनजातियों में भी सामान्य रूप से देखा जा सकता है। सरकार की नियत ने ये तो स्पष्ट कर दिया है की महिल अब सिर्फ तुष्टीकरण का साधन नही है बल्कि विकास के पथ की साथी है और विकसित भारत 2047 के लक्ष्य में महिला बराबर की भागीदार भी है और जब भारत 2047 में अपने विकसित रूप में खड़ा होगा तब महिलाएं भी पुरुषो के साथ बराबर में खड़ी होगी और लंबे समय की शोषण की दस्ता से मुक्त होगी।