हिंदू धर्म में प्रत्येक त्यौहार बड़ी श्रद्धा भाव से पूरे रीति रिवाज के साथ मनाया जाता है। ऐसे ही व्रत त्योहार में से एक है हलषष्ठी का त्यौहार यह त्यौहार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है वहीं रविवार को अंचल के साथ हटा व गांव में हलषष्ठी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया सुहागिन महिलाएं ने संतान सुख प्राप्ति के लिए हलषष्ठी पर व्रत रखकर विधि विधान से पूजा अर्चना किया।
अर्चना के बाद हलषष्ठी पर्व से संबंधित कथा कहीं व सुनाई गई । इस हलषष्ठी व्रत में किसी देव प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती इसलिए महिलाएं सुबह से ही सामूहिक रूप से घर के आंगन में एक गड्ढा खुद कर तालाब ( सगरी ) बनाया इसमें झरबेरी, काशी और पलाश वृक्षों की एक टहनी खड़ी कर बांधी तथा 8 10 दिन पहले बोई गई कजरी तथा सूत की पिंडी रखकर पूजा की गई।घी से दीपक जलाए गई तथा हवन में भी भैंस घी का उपयोग किया गया। मान्यता है कि भाद्र पक्ष मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था।
बलराम का प्रधान अस्त्र हल है इसलिए इसे हलधर भी कहा जाता है यही कारण है कि इस दिन को हल छठ कहा जाता है यही कारण है कि इस दिन को हलचल भी कहा जाता है हलषष्ठी करने वाली महिलाएं व्रत के दिन हल-जोत कर उत्पन्न की जाने वाली किसी भी वस्तु का प्रयोग नहीं करती हैं। प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली अनाज व 6 प्रकार सब्जियों से बनी भोज्य पदार्थ का ही सेवन कर व्रत तोड़ी जाती है पंडित ने बताया कि इस दिन भगवान शिव पार्वती गणेश कार्तिकेय नंदी आदि का पूजा का विशेष महत्व होता है विधि पूर्वक हलषष्ठी पूजन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। जिसमें मुख्य रूप से उपस्थित थे श्रीमती बिमला रैकवार सीमा,आदि उपस्थित थे।