रिपोर्ट_ दमोह पुष्पेन्द्र रैकवार
निर्यापक मुनि श्री योग सागर जी महाराज कुंडलपुर दमोह ।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य जेष्ठ श्रेष्ठ निर्यापक श्रमण मुनि श्री योग सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा आज पावन पर्व है पर्व का अर्थ होता है महोत्सव कौन सा महोत्सव है ना जन्म महोत्सव है ना दीक्षा महोत्सव है आज तो मृत्यु महोत्सव है।
जिन्होंने मृत्यु महोत्सव का अनुभव किया उन्होंने अपने जीवन में जिनवाणी की आराधना करते-करते जिस चीज की उपलब्धि की जिन्होंने अपने जीवन को पूरा का पूरा लगाया और अंत में उन्हें मृत्यु महोत्सव का लाभ हुआ।
- ऐसे महान आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज का दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था ।आज से सन् 1968 –1969 दो साल लगातार 2 माह 3 माह तक उनके चरण वंदन करने का रज लगाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ ।उस वक्त मैं बालक जैसा था ।10 -12 वर्ष का था धर्म के बारे में जानता ना था ।उनके वचन सुनता रहा ।आचार्य विद्यासागर जी ने मुझे णमोकार मंत्र सिखाया।
यह नहीं पूछा मैं यह क्यों पढ़ रहा हूं क्यों पढ़ा रहे हो बड़े कहते हैं बड़ों की बात मानना जो पढ़ा रहे उनसे पूछना नहीं जो कह रहे सही कहते हैं हां कहते जाओ। मुझे ज्ञानसागर महाराजकी क्या उपलब्धि हुई आचार्य ज्ञानसागर महाराज के मुखारविंद से वह उपलब्धि हुई आचार्य ज्ञानसागर महाराज जब भी प्रवचन करते णमोकार मंत्र का मंगलाचरण करते और चत्तारि दंडक का उच्चारण करते। मुझे चत्तारि दंडक याद हुआ यह उपलब्धि ज्ञान सागर महाराज से हुई इससे बढ़कर और क्या चाहिए।
- दो बार लगातार दर्शन किया तीसरी बार आया तो मैं विद्यासागर के सागर में यह बूंद समा गया ऐसा प्रभाव पड़ा आचार्य ज्ञान सागर का ऐसा बीज हमें मिला था वह विद्यासागर के सरोवर में बीज अंकुरित हुआ। मैंने कभी जीवन में सोचा नहीं था कि मुनि बन जाऊंगा क्योंकि छोटी उम्र थी संस्कार तो थे णमोकार मंत्र आता संस्कार होते हुए वह पुण्य ऐसे जागृत हुआ उनके चरणों में समर्पित हुआ वैराग्य का सोचा नहीं था।
मैं तो पिकनिक मनाने आया था बहुत दिन हो गए यह सोचा दर्शन नहीं करें चलो इतना था पुण्य का उदय ऐसा आया ज्ञान सागर महाराज के दर्शन करते वे दृश्य हमें आज भी सामने दिखाई देते है। हमें भजन के लिए खड़े करते थे जो भी याद आता है कई लोगों ने कविता लिखी उसमें एक कविता हम लोग बोलते थे ।खिले हैं सखी आज दुल्हन बनके ।उनकी कृपा से उनके आशीर्वाद से हम लोग यहां आए हम लोग शक्ति प्राप्त कर रहे हैं जो गुरुओं ने प्राप्त किया। समाधि जिसे प्राप्त हो जाए अब संसार में भटकने की बात नहीं है ।