पुष्पेन्द रैकवार मानवाधिकार मीडिया मध्यप्रदेश
कुंडलपुर दमोह । सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री समयसागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा कोलाहल के माध्यम से मन हमेशा विक्षिप्त रहता है जैसे अभी एक सेकंड के लिए कुछ बोला नहीं था मैंने ऐसे ही मौन बैठे तो अच्छा लग रहा शब्दों का भी बहुत बड़ा प्रभाव रहता है और प्रदूषण भी होता है उसे शब्द प्रदूषण बोलते निष्प्रयोजन बोलने की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार आचार्य महाराज का बार-बार संघ के लिए संबोधन रहता था आवश्यक हो तो वचनों का प्रयोग करें ।एक बार गुरुदेव ने कहा था कि बोलना अनिवार्य नहीं किंतु आवश्यक हो तो आगम के माध्यम से अल्प शब्दों के माध्यम से उस विषय को पूर्ण करना चाहिए ।इच्छा नहीं जागृत होती है गुरुदेव ने कहा था आपके साथ कोई बोलना नहीं चाहता तो आपकी क्या दशा होगी आपके साथ कोई एक व्यक्ति भी वार्तालाप नहीं करना चाहता है मान लो उस समय आपके अंदर क्या व्यू उठते हैं ।अब दूसरे के अधीन क्यों हो रहे हम स्वाधीन जीवन पसंद नहीं करते समझने के लिए जब निद्रा का उदय हो जाता है तो उस समय ऑटोमेटिक ही नींद आती है तो किसके साथ आप वार्तालाप करते हो 4 –6 घंटे के लिए मान लो शयन अवस्था में समय व्यतीत हुआ किसके साथ बोल रहे हो कहने की बात है किसके साथ बोल रहे ना उस समय आपकी दृष्टि में कोई शत्रु उपस्थित हुआ है ना मित्र उपस्थित हुआ है एक अवचेतन अवस्था है उस समय कोई भी विकल्प जागृत अवस्था नहीं होती है कोई विकल्प समय व्यतीत हो जाता जागृत अवस्था में 1 घंटे के लिए मौन लो कठिनाई होती संयम कहलाता है बहुत कठिनाई होती है निकटवर्ती कोई व्यक्ति हो तो मन में भाव आता है भले बाद में 2 घंटे के लिए मौन हो लूं अभी तो भाव आता बोलना इस प्रकार से मन स्थिति एक प्रकार से होती है इसलिए उसको समझाना बहुत कठिन हो जाता है ।निष्प्रयोजन मन वचन काय की चेष्टा को रोकने के लिए कहा गया है ।यह भी कहा गया है मन वचन काय की जो स्वच्छंद प्रवृत्ति है उसको रोकने का नाम गुप्ति भी कहा है। आप मान लो किसी के साथ बोल भी रहे हैं तो भी उसको गुप्ति की संज्ञा दी जा रही ।क्योंकि स्वच्छंद प्रवृत्ति को अपने रोका है ।आपकी प्रवृत्ति तो हो रही है उसके साथ असंयम का कोई संबंध नहीं है इसलिए स्वच्छंद प्रवृत्ति को रोकने का नाम गुप्ति कहा ।गुप्ति का अर्थ भी यही है कि गोपनम इति गुप्ति जिसके माध्यम से आत्मा की रक्षा हो उसका नाम गुप्ति कहा है ।किसी दूसरे की हम रक्षा कर रहे हैं उसको गुप्ति नहीं कहा ।क्योंकि किसी न किसी प्रयोजन को लेकर के एक दूसरे की रक्षा के भाव आपके हो सकते हैं क्योंकि उसके साथ आपका संबंध जुड़ा हुआ है ऐसा लगता है कि मैं रक्षा करने जा रहा वह रक्षा नहीं मानी जाती प्राणी मात्र के प्रति रक्षा का जो भाव आता है वही वस्तु का मैत्री भाव माना जाता अथवा कारुण्य भाव माना जाता है। स्वार्थ के साथ किसी के साथ संबंध जोड़ना मात्र संबंध है उसके द्वारा संसार का निर्माण होता है ।संयम होने के उपरांत निश्चित रूप से समय पाकर के प्रयोजनीय होता है। संयोग दशा में संसारी प्राणी आनंद का अनुभव करता है। जैसे किसी का जन्म हो गया तो आनंद मानता संयोग हुआ है उसके वियोग में दुखी हो जाता है दुख का अनुभव करता है।
आर्यिकारत्न श्री पूर्णमति माताजी का कुंडलपुर से मंगल विहार
चातुर्मास का निवेदन करने बड़ी संख्या में लोग कुंडलपुर पहुंच रहे
कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर से मुनि संघों एवं आर्यिका संघों का मंगल विहार विभिन्न नगर क्षेत्र की ओर निरंतर होने का क्रम जारी है। 20 जून को प्रातः आर्यिकारत्न श्री पूर्णमति माताजी ससंघ का मंगल विहार आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से कुंडलपुर से पटेरा की ओर हुआ ।विहार दिशा संभवतः मुरार ग्वालियर। पटेरा में आहार चर्या संपन्न हुई ।अभिनव आचार्य भगवन श्री समय सागर जी महाराज के आशीर्वाद से आर्यिका रत्न श्री मृदुमती माताजी ससंघ का मंगल विहार कुंडलपुर से हुआ आहार चर्या पटेरा में संपन्न हुई। विभिन्न नगरों से चातुर्मास की आश लेकर मुनि भक्तों का कुंडलपुर में आचार्य श्री समय सागर जी महाराज से अपने-अपने नगर में चातुर्मास हेतु निवेदन करने बड़ी संख्या में लोग कुंडलपुर पहुच रहे हैं ।बांसा ग्राम से पैदल चलकर बड़ी संख्या में लोग कुंडलपुर पहुंचे और चातुर्मास नगर में स्थापित हो इस आशा के साथ आचार्य श्री समय सागर जी महाराज से निवेदन किया।