हटा में रहो धर्म को छोड़ो नहीं आचार्य श्री समयसागर जी महाराज

हटा से पुष्पेन्द्र रैकवार कि रिपोर्ट

  • आचार्य श्री समयसागर जी महाराज ससंघ की हटा में हुई भव्य अगवानी

हटा ।युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ससंघ का बुंदेलखंड की काशी हटा नगरी में भव्य मंगल प्रवेश हुआ ।इस अवसर पर आचार्य श्री ससंघ की गाजे बाजे के साथ भव्य अगवानी की गई ।

  • मुख्य मार्ग से होते हुए आचार्य संघ श्री पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर पहुंचा। आचार्य संघ( 24 पिच्छी )के साथ आर्यिकारत्न श्री तपोमति माताजी ससंघ (6 पिच्छी) का भी मंगल आगमन हुआ ।धर्म सभा आयोजित हुई जिसमें चारों जिनालय के प्रतिनिधि एवं विभिन्न नगरों से आए हुए श्रावकों ने श्रीफल अर्पित कर आचार्य श्री का आशीर्वाद लिया।
  • इस अवसर पर आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा सन 76–77 में आचार्य महाराज के साथ हम यहां आए हटा कई बार आए हैं। हटा कहते ही तालियां बजती हैं इसका मतलब हटा के प्रति आप लोगों का बहुत लगाव है। इससे भी ज्यादा लगाव प्रभु के प्रति होना चाहिए ।कोई बाधा नहीं हटा में रहो धर्म को छोड़ो नहीं ।और हटा पटेरा कुंडलपुर जहां आचार्य महाराज का बार-बार विहार होता था अनेक बार प्रवास यहां हुआ।

अनेक ग्रंथों का यहां बैठकर के अनुवाद गुरुवर ने किया ।आज वर्तमान में वही वातावरण देखने को मिल रहा।40–45 साल पूर्व में जो हटा की स्थिति थी वह स्थिती हट गई एक नया देखने को मिल रहा। गुरुदेव का प्रभाव है उन्होंने यहां धर्म का सिंचन किया और सारे सारे वातावरण में धर्म को यहां तक ले आए ।प्रभु के सामने आत्म तत्व का चिंतन करने के लिए मनन करने के लिए मिला है ।

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  • धर्म का जो स्वरूप है वह इतना विराट है गणधर परमेष्ठी भी उसका कथन नहीं कर पाएंगे ऐसी प्रकृति है । आचार्य श्री ने प्रवचन देते हुए आगे कहा आत्मिक विकास के लिए आत्मगत परिणाम को निर्मल बनाने के लिए बहुत सारे साधन है और पुण्य के उदय में उन साधनों की उपलब्धि भी होती है ।किंतु उन साधनों का कौन कितना सदुपयोग कर रहा है इसको सोचने की बात है ।ऐसे भी जीव है संसार में जिनके लिए पुण्य का उदय नहीं है उच्च कुल नहीं मिला है ।
  • अहिंसा धर्म का क्या स्वरूप है यह ज्ञात नहीं है ।कर्मों का फल भोगने के लिए वह यत्र तत्र विचरण कर रहा है ।विषयों की आकांक्षा के कारण ही उस जीव का पतन हो रहा है किंतु जिन्होंने पुरुषार्थ किया है जीवन में उसके लिए मोक्ष मार्ग की ओर साधन सामग्री उपलब्ध है। किंतु उस उपलब्ध साधन सामग्री का सदुपयोग यदि नहीं करता है तो उसका निश्चित रूप से पुनः पतन होना है।इस प्रकार कभी उत्थान होता है अपने निर्मल परिणामों के द्वारा किंतु तब पुण्य का उदय आ जाता है वैभव भी मिलता है किंतु वह वैभव से आकर्षित होकर के प्रभावित होकर के देव गुरु शास्त्र को ही भूल जाता है ।विडंबना है भूलना तो नहीं चाहिए किंतु भूलने वाला कौन सा तत्व है वह एकमात्र मोह है केंद्र में आठ कर्म है मोह प्रवृत्ति से भिन्न-भिन्न स्वभाव हैं आठ कर्मों में कोई राजा है
  • तो मोहिनी कर्म है ।मोहिनी कर्म के उदय के कारण संसारी प्राणी अपने स्वरूप से वंचित है वैभव साधन सामग्री इसकी सार्थकता तब सिद्ध होती है जब इसका निरंतर उपयोग करें सदुपयोग करें। किंतु धार्मिक साधनों का जो दुरुपयोग करता है उसका जो पतन होता है उसका हम कथन नहीं कर पाएंगे ।क्योंकि युक्ति सुनने को पढ़ने को मिलती है अर्थ यह है अन्य क्षेत्र में संसारी प्राणी पाप करता है अज्ञान के कारण प्रमाद के कारण कर्म के उदय के कारण पाप का अर्जन करता है ।
  • ज्यों ही धर्म का आलंबन लेता है देव गुरु शास्त्र के शरण में चला जाता है उसका अतीत का सारा का सारा अर्जित पाप धुल जाता है प्रक्षालित हो जाता है ।देव शास्त्र गुरु के आलंबन से और देवगुरु शास्त्र का समागम मिलने के उपरांत भी जिसकी मति काम नहीं करती वह उसका सदुपयोग नहीं करता उस ज्ञान का भी दुरुपयोग करना प्रारंभ करता है क्यों होता है ऐसा गुरुदेव ने भी एक दोहा लिखा है।

दोहा रख रहा हूं। ज्ञान दुख का मूल है और ज्ञान ही भव का फूल ।राग सहित प्रतिकूल है और राग रहित अनुकूल। रागान्वित जो ज्ञान है वह दुख के लिए कारण है। गर्त तक पहुंचाने में कारण पतन का कारण है ।राग रहित जो वीतराग विज्ञान है वह मोक्ष तक पहुंचने में समर्थ है ऐसा कहा है। किसने बार चतुर्थ काल मिला कितने बार साधुओं का समागम मिला कितने बार मनुष्य जीवन मिला कितने बार आर्यखंड में पैदा हुए जिसका कोई हिसाब नहीं ना किताब है। किंतु वर्तमान में मोह का जो चक्र है वह बहुत भयानक है उस चक्र की चपेट में अच्छे-अच्छे व्यक्ति आते हैं।

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