“शहंशाह की बेहिसाब बख़्शिशों के बदले में एक कनीज़ जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर को अपना ख़ून मुआफ़ करती है.”

फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म में वजाहत मिर्ज़ा के लिखे इस डायलॉग में एक तरफ़ हैं बादशाह अकबर और दूसरी तरफ़ उनके दरबार में नाचने वाली कनीज़ अनारकली.

आज से 65 साल पहले 5 अगस्त 1960 को रिलीज़ हुई हिंदी फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म ऐसे संवादों, बेहतरीन गानों और भव्य दृश्यों से भरी पड़ी है.

यहां तक कि जब 2006 में, 46 साल बाद, ये फ़िल्म पाकिस्तान में रिलीज़ हुई तब भी इसका प्रीमियर काफी भव्यता से किया गया था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *