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कथा वाचक पं श्री गिरधारी शरण शास्त्री जी श्री धाम वृदांवन से आये पंडित गिरधारी शरण शास्त्री महराज ने रास पंच अध्याय का वर्णन किया।
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उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय है। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण है। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना
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,कालयवन का वध,उधव गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुकमणी विवाह आदि प्रसंगों का संगीतमय वर्णन किया। भारी संख्या में महिलाओं व पुरुषों के साथ छोटे बच्चों व भक्तगण भगवत कथा सुनने का हुजूम उमड़ा कथा के दौरान कथा वाचक महाराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों बुला लिया और दर्शन कर लिया हो तो जाव इस के बाद आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ। बस उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुखमय जीवन बिताया
।भगवान श्रीकृष्ण रुकमणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। भागवत कथा के छठवें दिन कथा स्थल पर रूकमणी विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। श्रीकृष्ण रुकमणी की वरमाला पर जमकर फूलों की बरसात हुई। कथावाचक पं गिरधारी शरण शास्त्री द्वारा भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं
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उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है* कथा श्रवण के दौरान स्थानीय महिलाओं पर पांडवों के भाव अवतरित हुए कथा वाचक ने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है। इसलिए जीव के अंदर अपारशक्ति रहती है यदि कोई कमी रहती है वह मात्र संकल्प की होती है संकल्प एवं कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे। उन्होंने महारास लीला उद्धव चरित्र कृष्ण मथुरा गमन और रुक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर विस्तृत विवरण दिया।
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रुक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर व्याख्यान करते हुए उन्होंने कहा कि रुकमणी के भाई रुकमणी ने उनका विवाह शिशुपाल के साथ सुनिश्चित किया था। लेकिन रुक्मणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल को नहीं केवल गोपाल को पति के रूप में वरण करेंगे उन्होंने कहा शिशुपाल असत्य है और द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण सत्य है इसलिए वो असत्य को नहीं सत्य को अपना एगी अंत भगवान द्वारकाधीश जी ने रुक्मणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया और उन्हें पत्नि के रूप में वरण करके प्रधान पटरानी का स्थान दिया। रुक्मणी विवाह प्रसंग पर आगे कथावाचक ने कहा इस प्रसंग को श्रद्धा के साथ श्रवण करने से कन्याओं को अच्छे घर और वर की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सुखद रहता है।
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सैकड़ों महिला पुरुषों की उपस्थिति देखी गई इस कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से शंकर जी का चबूतरा मां विध्यवासिनी मंदिर कमला नेहरू वार्डकथाश्रोता श्री मति मायारानी सीताराम कोरी भोले के भक्त मित्र मंडली हटा सैकड़ों महिला पुरुषों की उपस्थिति देखी गई