सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में महासमाधिधारक संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य मुनि श्री दुर्लभ सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा युग बीतते हैं, सृष्टि बदलती है ,कई युग दृष्टा जन्म लेते हैं अनेकों की स्मृतियां शेष रह जाती हैं कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो अपनी करुणामयी महती कार्यों से युग युगान्तर तक याद ही नहीं अपितु आदर्श के रूप में हम जैसे अनेक लोगों का मार्ग जिन्होंने प्रशस्त किया है ।असंख्य जन-मानस को घने तिमिर से निकालकर उज्जवल प्रकाश से प्रकाशित कर दिया ऐसे निरीह, निर्लिप्त, निरपेक्ष, अनियत विहारी स्वावलंबी जीवन जीने वाले युग पुरुष की सर्वोच्च श्रेणी में आते है वे है हमारे गुरुदेव, हमारे भगवन्त विद्यासागर जी महामुनिराज। जिन्होंने स्वेच्छा से अपने जीवन को पूर्ण वीतरागमय बनाया। जिन्होंने त्याग और तपस्या से कार्य किया स्वंय के रूप को स्वरूप को संयम के सांचे में डाला और अनुशासन को ही अपनी ढाल बनाया ऐसे महान गुरु हमें पंचम काल में दर्शन दे रहे थे। हम सब का कल्याण किया। अगर परमात्मा का परिचय कौन कराता अंदर बैठी आत्मा का परिचय कौन कराता सत्ता के सानिध्य संसर्ग और अंदर की चेतना जागती है उसका नाम ही तो गुरु है। अंदर बैठे परमात्मा का बोध कराने वाले वे गुरु हैं। आपने सुना होगा गुरु साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे आजकल जो भी सिद्ध हुए हैं गुरु चरणों से ही उनके सिद्ध की यात्रा प्रारंभ होती है। एक बात कहूं राग में आकर्षण होता है वह आकर्षण विकर्षण में रूपांतरित होने में देर नहीं लगती। राग में आकर्षण होता है पर वह आकर्षण विकर्षण होने में देर नहीं लगती ।राग केंद्रित होता है सामने वाला जब तक राग करता है वह राग रहता है राग टूटने में देर नहीं लगती स्वयं की भी भावना होती है और टूट जाती है लेकिन समर्पण की प्यास न्यारी है उसमें भी आकर्षण होता है पर विकर्षण के रूप में रूपांतरित नहीं होता है। समर्पण पर केंद्रित होता है मोक्ष मार्गियो के लिए पर केंद्रित सब है जो उन्होंने किया है जो उन्होंने करा है वह करते चले गए। गुरुदेव चले गए हैं ,पर गुरुदेव हमारे पास हैं ।गुरुदेव की आंखों को लेकर कुछ लिखा था जिनके अंदर आदर भाव झलकता है जिनको देखकर अभिनंदन भाव झलकता हो जिनको देखकर आकिंचन भाव होता हो और अहोभाव होता हो जिन आंखों को देखकर हम झुक जाएं हम समर्पित हो जाएं अपने आप को अर्पित कर दें वह है आदर भाव। जिन आंखों को देखने से हमारा अहमभाव गल जाए उनकी अहमियत से अपने जीवन को समतामय बना लें ये है आदर भाव। जिन आंखों को देखने से हमारे दर्द की भटकन और संसार की अटकन समाप्त हो वह आंख हमारे जीवन को संवारने वाली हो। मुनिश्री ने आंखों पर रचित अपनी रचना सुनाई और आचार्य श्री से संबंधित संस्मरण सुनाया किस तरह है उन्हें मुक्तागिरी में आचार्य श्री का पहला दर्शन प्राप्त हुआ
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