दीपक गर्ग ,पुष्पेन्द्र रैकवार कि रिपोर्ट
- किताब विक्रेताओं की मनमानी से अभिभावक परेशान
- जब इस संबंध में महर्षि स्कूल के संचालक संदीप दुबे जी से बात की तो उन्होंने खुद कहा की ये सही नही और कहा की में कल बच्चे को स्कूल में किताबे दे दूंगा
/हटा के चौबे स्टेशनरी पर जब महर्षि स्कूल क्लास 5वी की जब किताबें मांगी गई तब किताबे लेने के साथ साथ काफी भी लेना पड़ेगी ये बोला गया अन्यथा आपको किताबे नही मिलेंगी ,और किताबे भी प्रिंट रेट पर भी बेंची जा रही है, फिर जब वीडियो बनाई गई तो बोला गया की साम तक मिलेंगी ,
- अब सोचने वाली बात ये है की कोई गरीब किसान अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में पढाना चाहता हो और उसे केवल एक ही जगह उस स्कूल की किताबे मिले, और वह किसी दूर गांव से इस बरसात के समय में अपने बच्चे को लेकर किताबे लेने हटा आया हो तो वो गरीब किसान क्या करेगा शाम तक रुकेगा या फिर चक्कर कटेगा
बेबस होकर किताबो के साथ साथ काफी भी प्रिंट रेट पर खरीदेगा स्टेशनरी विक्रेता द्वारा मनमाने तरीके से नियम चलाए जाए तो क्या करेगा बो गरीब आदमी स्टेशनरी के चक्कर कटेगा या काफी और किताब साथ में लेगा मनमाने तरीके से क्यों कि अगर किसी बच्चे के पास पिछले साल की काफी रखी हो या उसको कही से और लेनी हो काफी तो ये कहा तक सही है की आपको किताबो के साथ काफी भी लेना पड़ेगी
- जब इस संबंध में महर्षि स्कूल के संचालक संदीप दुबे जी से बात की तो उन्होंने खुद कहा की ये सही नही और कहा की में कल बच्चे को स्कूल में किताबे दे दूंगा ये होती है मानवता न की चौबे स्टेशनरी के जैसे एक तरफा मनमानीजहा आज एक और शिक्षा को सराकर द्वारा मजबूत बनाने का प्रयास किया जा रहा वही एक और इसे कुछ किताब विक्रेताओं द्वारा माल भी प्रिंट रेट पर बेंचा जा रहा