ढाका: इसी हफ्ते बांग्लादेशी छात्रों के दबाव में आकर हाईकोर्ट के करीब 10 जजों पर प्रतिबंध लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने इस बार देश की संसद से एक बड़ा अधिकार छीन लिया है। इससे बांग्लादेश में खलबली मच गई है। देश के उच्चतम न्यायालय ने इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायिक परिषद को न्यायिक कदाचार के आरोपों की जांच करने के अधिकार के साथ रविवार को बहाल कर दिया। शीर्ष अदालत ने इस दौरान अपने उस पिछले फैसले को भी बरकरार रखा, जिसमें 16वें संविधान संशोधन को “अवैध” घोषित किया गया था, जिसके तहत न्यायाधीशों को हटाने का अधिकार संसद को हस्तांतरित किया गया था। मगर यह अधिकार सुप्रीम कोर्ट ने अब संसद से वापस ले लिया है।
उच्चतम न्यायालय के वकील रूहुल कुद्दुस ने उच्चतम न्यायालय द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद संवाददाताओं को बताया, ‘‘यह आदेश प्रधान न्यायाधीश सैयद रेफात अहमद के नेतृत्व वाली उच्चतम न्यायालय की अपीलीय प्रभाग की छह सदस्यीय पीठ द्वारा पारित किया गया।’’ सुनवाई में मौजूद कुद्दुस ने कहा कि इस फैसले ने मूल संवैधानिक प्रावधानों को मजबूत किया है। इस फैसले का मतलब पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासनकाल के दौरान पारित 16वें संवैधानिक संशोधन को रद्द करना भी है, जिसके तहत न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने का कार्य उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों वाली सर्वोच्च न्यायिक परिषद के बजाय संसद को सौंप दिया गया था।
क्या था बांग्लादेश का 16 वां संशोधन
बांग्लादेश का सोलहवां संशोधन जनवरी 2014 में पारित किया गया, जिसने सर्वोच्च न्यायिक परिषद को न्यायाधीशों को अक्षमता या कदाचार के लिए हटाने के उसके अधिकार से वंचित कर दिया। हालांकि मई 2016 में उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने 16वें संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिसे सरकार ने जनवरी 2017 में चुनौती दी। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार सिन्हा के नेतृत्व वाली सात न्यायाधीशों की अपीलीय खंडपीठ ने जुलाई 2017 में उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले को बरकरार रखा, जिसमें 16वें संविधान संशोधन को ‘‘अवैध’’ घोषित किया गया था। फैसले के बाद, तत्कालीन हसीना सरकार ने शीर्ष अदालत से फैसले की समीक्षा करने के लिए एक याचिका दायर की, जिसका निस्तारण शीर्ष अदालत के रविवार के फैसले के साथ हुआ।
इसी फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट और शेख हसीना में हो गया था तनाव
इस मामले पर 2017 के उच्चतम न्यायालय के फैसले के चलते सिन्हा का तत्कालीन शेख हसीना सरकार के साथ परोक्ष तौर पर टकराव हो गया, जिसके कारण उन्हें विदेश में रहते हुए अपने पद से जबरन इस्तीफ़ा देना पड़ा और तब से वे बांग्लादेश से बाहर ही हैं। छात्रों के नेतृत्व में हुए आंदोलन की वजह से हसीना के लगभग 15 साल के शासन का अंत हो गया और उन्हें पांच अगस्त को देश छोड़ना पड़ा। चार दिन बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार की भूमिका संभाली। सत्ता संभालने के बाद से, नये प्रशासन ने हसीना की तत्कालीन सरकार के कई मंत्रियों और नेताओं को गिरफ़्तार किया है। (भाषा)