Bhool Chuk Maaf Review:चूक से भरी स्क्रीनप्ले वाली इस फिल्म को भूलना है बेहतर


फिल्म- भूल चूक माफ

निर्माता -मैडॉक फिल्म्स 

निर्देशक -करण शर्मा 

कलाकार -राजकुमार राव ,वामिका गब्बी,रघुबीर यादव ,सीमा पाहवा ,संजय मिश्रा,जाकिर हुसैन इश्तियाक खान, धीरेन्द्र गौतम और अन्य 

प्लेटफार्म -सिनेमाघर  

रेटिंग – दो 

bhool chuk maaf review :मैडॉक फिल्म्स हिंदी सिनेमा में अपनी हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स की वजह से खासा पहचान रखता है. इस बार भूल चूक माफ़ से टाइम लूप यानी साइंस फिक्शन जॉनर को कॉमेडी के साथ एक्सप्लोर किया  है.टाइम लूप मतलब किसी किरदार का एक ही दिन या एक ही घटना के समय चक्र में फंस जाना. यह जॉनर एडवेंचर का माना जाता है,लेकिन कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले की वजह से फिल्म देखते हुए आपको एडवेंचर नहीं बल्कि फंसा हुआ ज्यादा महसूस होता है.

क्या है कहानी

फिल्म  की कहानी की बात करें तो यह बनारस के रहने वाले रंजन तिवारी (राजकुमार राव)की कहानी है. उसके स्कूल टाइम का प्यार तितली मिश्रा (वामिका गब्बी )है. दोनों के प्यार के दुश्मन तितली के पिता (जाकिर हुसैन )हैं. तितली के पिता एक शर्त में अपनी बेटी की शादी के लिए राजी होते हैं अगर निठल्ला रंजन दो महीने में सरकारी नौकरी पा लेगा तो ही उसकी शादी तितली से होगी। दो महीने में सरकारी नौकरी पाने के जुगाड़ उसे एजेंट भगवान (संजय मिश्रा )के साथ-साथ भगवान् शिव के पास पहुंचा देता है. एजेंट भगवान को वह 8 लाख रिश्वत देता है और भगवान शिव के सामने मन्नत मांगता है कि नौकरी हो जाने के बाद वह एक परोपकारी काम करेगा. भगवानों की कृपा से उसकी नौकरी हो जाती है और शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं.हल्दी की रस्म होती है, जब रंजन अगले दिन सोकर उठता है तो शादी का दिन ना होकर फिर से हल्दी वाला दिन यानी 29 तारीख ही आती है.वह 29 तारीख के लूप में फंसा हुआ रहता है.हर दिन वह सोकर उठता है तो उसके हल्दी की रस्म होती है और 30 तारीख यानी शादी की तारीख आ ही नहीं पाती है.वह 29 तारीख में क्यों अटक गया है. क्या उसका कनेक्शन भगवान शिव की मन्नत से है. रंजन को अपनी शादी के लिए क्या परोपकार करना होगा.आगे की कहानी उसी की है. 

फिल्म की  खूबियां और खामियां

फिल्म के कांसेप्ट की बात करें तो टाइम लूप के रोचक विषय के साथ इसमें बेरोजगारी,सामाजिक जिम्मेदारी और आत्म चेतना जैसे पहलुओं को भी अहमियत दी गयी है, जो सुनने में एक बार को रोचक लग सकता है. लेकिन कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले के साथ जिस तरह से इसे जोड़ा गया है. वहां न सिर्फ मामला मनोरंजन से चूक गया है बल्कि कई बार बोझिल भी हुआ है, इंटरवल तक कहानी सिर्फ मुद्दे पर आने में चली जाती है. ऐसा लगता है कि हम ट्रेलर का एक्सटेंशन वर्जन देख रहे हैं, सेकेंड हाफ में टाइम लूप का ड्रामा शुरू होता है, लेकिन उसमें रोमांच गायब है. टाइम लूप पर बनी विदेशी फिल्मों की खासियत ही इनका रोमांच होता है.जो यहाँ से नदारद है.एक ही तारीख को जीने का प्रसंग एक समय के बाद उबाऊ हो गया है.फिल्म का क्लाइमेक्स भी पूर्वानुमानित है और उसका ट्रीटमेंट भी रटा रटाया है. वही एक सोशल कमेंट्री से सभी को अपनी भूल का एहसास होता है और सब ठीक हो जाता है. बनारस का जो बैकड्रॉप है.परिवार से लेकर बोली तक हम कई फिल्मों में अब तक देख चुके हैं, जिस वजह से नयापन यहाँ से नदारद है और सिनेमेटोग्राफी के लिए भी यही बात की जा सकती है.ड्रोन शॉट भी नयापन नहीं जोड़ पाया है.फिल्म के गीत संगीत की बात करें तो लव आजकल के आइकॉनिक गीत चोर बाज़ारी को फिल्म में  रिक्रिएट किया गया है लेकिन दूसरे गीतों में भी पॉपुलर गीतों की छाप नज़र आती है.टिंग लीग सजना गाने के बीट्स खेतों में तू आयी नहीं की बरबस की याद दिला जाता था. गीत संगीत के साथ दिक्कत सिर्फ यही नहीं है बल्कि भरमार होने की वजह से यह कहानी की गति को बाधित भी करते हैं.संवाद चुटीले हैं,लेकिन टुकड़ों में ही यह हंसा पाते हैं..एक सीन में रंजन तिवारी का किरदार गाय के गुड़ रोटी खाने को पूरण पोली का नाम देता है. जो उत्तर प्रदेश नहीं बल्कि महाराष्ट्र के व्यंजन का नाम है. यह संवाद हंसाता बल्कि खटकता ज्यादा है.

राजकुमार और वामिका की जमी है जोड़ी

अभिनय की बात करें तो यह फिल्म राजकुमार राव की है. उन्होंने अपने किरदार को बखूबी जिया है , लेकिन फिल्म उन्हें कुछ नया करने को नहीं देती है. ऐसे अंदाज में उन्हें हम पहले भी कई बार देख चुके हैं. चुलबुली और चंचल तितली की भूमिका में वामिका गब्बी जंची है. राजकुमार और उनकी केमिस्ट्री परदे पर अच्छी लगती है. रघुबीर यादव जैसे सशक्त कलाकार के लिए एक भी यादगार सीन नहीं लिखा गया है. सीमा पाहवा, जाकिर हुसैन सहित बाकी के कलाकारों के लिए फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था. संजय मिश्रा अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं. बाकी के कलाकारों में इश्तियाक खान और धीरेन्द्र गौतम  अपने हिस्से के दृश्यों में जमें हैं.



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