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“शहंशाह की बेहिसाब बख़्शिशों के बदले में एक कनीज़ जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर को अपना ख़ून मुआफ़ करती है.”

फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म में वजाहत मिर्ज़ा के लिखे इस डायलॉग में एक तरफ़ हैं बादशाह अकबर और दूसरी तरफ़ उनके दरबार…