हटा दमोह संवाददाता पुष्पेंद्र रैकवार
मुनि श्री निरीहसागर जी ने सुनाएं कुछ प्रसंग
कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र, जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से मुनिश्री निरीह सागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कल शाम को आचार्य भक्ति के बाद आचार्य श्री ने मुझे बुलाया एक ब्रह्मचारी के माध्यम से और कहा कल आपको प्रवचन करना है हमने कहा हमसे बड़े-बड़े महाराज जी हैं उन्होंने कहा सब कर चुके हैं आपको करना है ।कुछ प्रसंग ऐसे होते हैं जो सामान्य लोगों ने कभी नहीं सुने लेकिन जो ऊपर मंच पर बैठे हुए हैं उनके सुने हुए हैं वही बात यहां से सुनेंगे तो उनको कैसा लगेगा। ठीक है सन 1983 की बात है आचार्य श्री का चातुर्मास ईसरी शिखरजी की तलहटी में हो रहा था ।वहां पर उन्होंने जो प्रवचन में कहा हमने किसी साधक के मुंह से ही प्रवचन में सुना था वह आपके सामने रख रहा हूं। उन्होंने प्रवचन में कहा कि छोटा बच्चा जो होता है उसकी मां दूध पिलाती वह मचलता बहुत है कटोरी में दूध रखा है चम्मच है मां ने गोदी में लिटाया वह हाथ पैर हिला रहा है मुंह भी इधर-उधर कर रहा है दूध पीना नहीं चाहता लेकिन मां समझदार है बच्चा भूखा है उसको दूध पिलाना है जबरदस्ती पिलाना है यदि नहीं पिलाया तो काम नहीं करने देगा बीच में रोएगा। दूध पिलाती है और उसके हाथ पैर छोटे-छोटे होते चलाता रहता है पूरे समय गर्दन भी इधर-उधर होती है तो मां युक्ति से उसके हाथ पैर को अपने पैरों से दवा लेती है और मुंह को पकड़ लेती नाक दबा देती उसके मुंह में चम्मच से दूध भर देती है नाक तब तक दबाए रहती जब तक वह गटक नहीं लेता ।ऐसे जबरदस्ती करके दूध पिलाती जाती है दो-तीन कटोरी दूध वह पी लेता है ।शरारती बच्चा था जबरदस्ती पिलाया ज्यादा ही शरारती था तब बाद में दही बनाकर निकाल देता है ।कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो दही बनाकर निकाल देते ।आचार्य जी ने कहा मां जबरदस्ती दूध पिलाती है कि वह काम करने नहीं देगा बाद में रोएगा इस तरह मैं भी आपको प्रवचन जबरदस्ती पिला रहा हूं आप पीना नहीं चाहते आपको पिला रहा हूं बाद में आप कहेंगे अपनी समस्या रखेंगे इसलिए पहले ही सुना रहा हूं। मैंने आचार्य श्री के मुख से साक्षात तो नहीं सुना किसी साधु के मुख से सुना था जितना ग्रहण कर पाए आपके सामने रख दिया ।ऐसा ही एक प्रसंग 2011 का है उसमें मुनि प्रसाद सागर जी का ज्यादा है आप उन्हें जानते हैं सब कुछ जल्दी-जल्दी कार्य होना चाहिए धीरे कोई काम नहीं होना चाहिए वैसे ही कुछ हुआ। आपको नहीं पता होगा प्रसंग वहां पर हम लोग विहार कर रहे थे दक्षिण यात्रा में गए थे ब्रह्मचारी अवस्था में थे। आचार्य श्री राजनांदगांव में थे । हम लोगों की बस दुर्ग से राजनांदगांव पहुंची। वहां 36 ब्रह्मचारी हम लोग पहुंचे आचार्य श्री छत्तीसगढ़ में विराजमान थे 36 मूलगुण के धारी आचार्य श्री के पास ।उनमें से 18 की मुनि दीक्षा हो चुकी है कुछ क्षुल्लक बन चुके हैं कुछ ब्रह्मचारी हैं ।श्रवणवेलगोल पहुंचे हम लोगों ने भट्टारक जी से अनुमति चाही रात के समय वहां 7–8 बजे अनुमति नहीं थी उनके पास पहुंचे वहां दो आर्यिका माता बैठी थी कुछ तत्व चर्चा चल रही थी हम लोग जाकर बैठ गए उनकी चर्चा समाप्त हुई आर्यिका माता उठकर चली गई हम लोगों ने अपनी चर्चा की अनुमति उनसे ली 1 घंटे हमारी बात हुई। हम लोग दर्शन करने के लिए उन आर्यिका माता के पास जहां रुकी थी दर्शन करने सभी जगह जाते थे वहां पूछते पूछते पहुंच गए हम लोगों ने आर्यिका माता के दर्शन किए उन्होंने गवाशन मुद्रा में नमोस्तु किया। हम लोग 36 ब्रह्मचारी थे आसपास कोई मुनि नहीं नमोस्तु किसे किया। उन्होंने पूछा आचार्य श्री का स्वास्थ्य कैसा है ।हम लोग सोचने लगे इन्हें कैसे मालूम हुआ हम आचार्य संघ के हैं उन्होंने कहा ऐसे युवा हीरे उन्हीं के संघ में हो सकते हैं ।आचार्य श्री का प्रभाव भी ऐसा था। अब 2018 का प्रसंग आता है डिंडोरी में आचार्य श्री थे महावीर जयंती के दूसरे दिन पपोरा जी के लिए विहार हुआ ।महावीर जयंती के समय और बाद में कितनी गर्मी होती है हमने विहार में कुछ व्यवस्थाएं की महाराज जी के आशीर्वाद से की ।वैसे हमें कुछ आता नहीं है प्रवचन नहीं आता हम कुछ प्रसंग सुना रहे हैं पुराने महाराज थे ब्रह्मचारी थे जबलपुर का विहार हो रहा था दुर्लभ सागर महाराज ने कहा आपको यह काम करना है पहले से वह स्थान देखना है जहां आचार्य श्री को रोकना है ठंड है तो ठंड के अनुकूल गर्मी है तो गर्मी के हिसाब से व्यवस्था करनी है। हमने वैयावृती कैसी करनी है तेल घी तो सभी करते हैं हमने कहा जो वैयावृती कोई नहीं करता वह हम करेंगे और हम जहां रुकना है आधे पौन घंटे पहले पहुंच जाते थे जहां आचार्य श्री को रोकना है वहां व्यवस्था ठंड गर्मी के हिसाब से देख लेते थे। सभी महाराज के पाटे लगवा देते थे ।विद्यालय में ही रुकना होता था वहां आहार होते थे बहुत बड़ा प्रांगण था किनारे किनारे कक्ष बने हुए थे। एक चौके वाले भाई आए और कहा हमें आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन करना है ।हमने उन्हें कहा इस चबूतरे पर जल कोपर रख दो। सभी चौके वाले किनारे बैठ गए। आचार्य श्री आ रहे थे मुनि लोग आ रहे थे संकेत कर दिया यहां आना है ।कोई पैर छूना नहीं मैंने कह दिया ।आचार्य श्री ने दोनों पैर कोपर में डाल दिए आचार्य श्री के आदेश से सभी ने उनके पैर धुलाये उन लोगों का पुण्य था उन्हें पाद प्रक्षालन का अवसर मिल गया।