shyam benegal death:इला अरुण ने बताया श्याम बाबू चलते फिरते इनसाइक्लोपीडिया थे 



shyam benegal death:महान फिल्मकार श्याम बेनेगल हमारे बीच नहीं रहें. उनके साथ फिल्म मंडी से लेकर वेलकम टू सज्जनपुर तक कई फिल्मों का हिस्सा रही गायिका और अभिनेत्री इला अरुण उन्हें अपना गॉड फादर, पिता और मेंटर सबकुछ करार देती हैं.श्याम बेनेगल के साथ अपने जुड़ाव और उनसे जुडी कई बातों को उन्होंने उन्होंने उर्मिला कोरी से शेयर की. बातचीत के प्रमुख अंश

श्याम बाबू के पास बैठने भर से दुनिया की हर तमीज और तहजीब आ जाती थी

जब से मुझे यह खबर मिली है. मुझे लग रहा है कि मेरे माई बाप चले गए हैं. मैं अनाथ हो गयी हूं. श्याम बाबू पूरी टीम को साथ लेकर जाते थे. उन्होंने ना सिर्फ अच्छी फिल्मों से हमारा परिचय करवाया बल्कि हम सबको परिवार की तरह सेट पर भी वह रखते थे. जिस भी कलाकार के साथ वह काम करते थे. वह उनकी तरह ही सोचने लगता है. वह सिनेमा के जरिये भौगोलिक, ऐतिहासिक और सामाजिक चीजों से हमको रूबरू करवाते थे.उनके पास बस बैठ जाइए और आपको जीवन की हर तमीज और तहजीब की समझ आ जाती थी. हिंदी सिनेमा के इतने लीजेंड फिल्मकार हैं. उनके काम की विविधता से सभी परिचित हैं , लेकिन वह अपने एक्टर्स को बहुत छूट देते हैं. इम्प्रूवाइज को बहुत ज्यादा महत्व देते थे. उनके ही निर्देशन की फिल्म मंडी से मैंने अपने अभिनय की शुरुआत की है. उन्होंने एक्टर के तौर पर हमेशा मुझे ग्रो होने का मौक़ा दिया.

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अभी भी मेरे कानों में उनके शब्द गूंज रहे हैं

मैं उनके बहुत करीब थी. जब मन होता था. वह मुझे कॉल कर लेते थे या मैं उन्हें कॉल कर लेती थी. दो हफ्ते में एक बार हम बात कर ही लेते थे. आखिरी बार मेरी बात उनके जन्मदिन पर हुई थी. मेरे किताब पर्दे के पीछे को लेकर मुझे बेंगलुरु साहित्य फेस्टिवल में जाना पड़ा था.जिस वजह से मैं उनके 90 वें जन्म दिवस का हिस्सा नहीं बन पायी. मुझे हमेशा इस बात का अफ़सोस रहेगा, वैसे 14 दिसंबर को साढ़े ११ बजे उनके दफ्तर में एक केक काटा था. उस वक़्त मेरी उनसे बातचीत हुई थी. वह बातचीत अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी. वह थोड़े लग बीमार थे, लेकिन अपने पिता समान इंसान के बारे में कोई कैसे सोच सकता है कि वह हमें जल्द ही छोड़कर जा सकते हैं.

श्याम बाबू चलते फिरते इनसाइक्लोपीडिया थे

श्याम बाबू की छवि बहुत सीरियस फिल्म मेकर की रही है, लेकिन ऑफ कैमरा वह बहुत ही जोक क्रैक करते थे. उनकी स्माइल बहुत ही अच्छी थी.जो भी उन्हें जानते हैं. उन्हें यह बात पता है कि वह खाने पीने के बेहद शौक़ीन थे. उनके सेट पर आपको खाने की बातें आपको सुनने को मिलेंगी. वैसे मैंने अपनी ज़िन्दगी में उनसे बड़ा इनसाइक्लोपीडिया आज तक नहीं देखा है. आप उन्हें सिर्फ एक शब्द बोलिये वह आपको उसपर पूरे दिन बात कर सकते हैं. आप सिर्फ बोलिये पतंग . वह पतंग के रंग, पतंग की मेकिंग, सबसे अच्छी पतंग कौन सी होती है. सभी के बारे में आपको ढेरों जानकारी दे सकते हैं. सिर्फ भारत और उससे जुडी चीज़ें ही नहीं बल्कि विदेशों के बारे में भी उनको सब पता था. नूडल्स के बारे में बात करते हुए वह आपको विएतनाम और चाइना के नूडल्स में क्या फर्क है. कौन किस तरह से अच्छा है. वह सब बता देते थे. मैंने उनसे एक बार फ़्रांस के म्यूजियम का जिक्र किया था. उसके बारे में उन्होंने मुझे कई ऐसी बातें बता दी थी, जो आपको गूगल पर भी नहीं मिलेगी. आप उनको बोल दीजिये मैं विदेश में इस जगह पर जा रही हूँ.वह आपको बता देंगे कि वहां किस रेस्टोरेंट में कौन सी डिश खानी ही चाहिए.हाल फिलहाल की ही बात है. एक मुलाक़ात के दौरान मैंने उनको बताया कि मैं नॉर्वे जा रही हूं. उन्होंने मुझे कहा कि नॉर्वे के इस रेस्टोरेंट में समन खाना मत भूलना.मैंने उससे पहले उस डिश का नाम भी नहीं सुना था,लेकिन श्याम बाबू ने बोलाथा तो मुझे खाना ही था. मैं उनके बताये हुए रेस्टोरेंट में पहुँच गयी और सामान डिश आर्डर किया. डिश सामने आयी तो मालूम हुआ कि ये फिश की डिश है.



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